बेक़ाबू
ये कैसा एहसास है जो दिल को छू रहा है
अजीब सा आलम है, सब बेक़ाबू क्यूँ है
कब वो नज़र भेद गयी सारे पहरे
कब ये अंजान सा शख्स दिल मे घर कर बैठा
एक अरसे से संभाला था जो नक़ाब
अब वो चेहरा बेनक़ाब क्यूँ है
अजीब सी जद्दोजेहत है
अजीब सा पागलपन
दिल बस खींचा चला जा रहा है
एक नशा सा क्यूँ है
आँख बंद कर लो कस के
ये सब बयाँ कर देगी
जो बरसो से राज़ रखे है
आख़िर इतनी बेसबर क्यूँ है
दिल में एक चुभन सी है
धड़कन तेज तेज है
अपने ही बेहाल पर
ए दिल आखिर इतना खुश क्यूँ है
ये कैसा एहसास है जो दिल को छू रहा है
अजीब सा आलम है, सब बेकाबू क्यूँ है
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